108 संजीवनी एक्सप्रेस टेंडर में गंभीर अनियमितताएं – QCBS प्रणाली का दुरुपयोग, मनचाही कंपनी को लाभ देने का आरोप

रायपुर में 17 जून, 2025। छत्तीसगढ़ राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की निविदा प्रक्रिया एक बार फिर विवादों के घेरे में है। हाल ही में जारी हुए 108 संजीवनी एक्सप्रेस टेंडर की तकनीकी मार्किंग में भारी अनियमितताओं के आरोप सामने आए हैं, जिनमें पूर्व नियोजित अंक गणना और पक्षपात की ओर स्पष्ट संकेत मिलते हैं। विभिन्न निविदा प्रतिभागियों और निगरानी संस्थाओं ने इस पूरी प्रक्रिया पर गंभीर आपत्ति जताई है।

यह पहला मामला नहीं है जब राज्य में ऐसी शिकायतें सामने आई हैं। इससे पूर्व, रूरल मोबाइल मेडिकल यूनिट, हाट बाजार क्लिनिक और प्रधानमंत्री जनमन योजना के टेंडर में भी इसी प्रकार की प्रक्रिया अपनाई गई थी, जिसके चलते अधिकांश योग्य और अनुभवी संस्थाओं ने बोली लगाने से परहेज़ किया था। जनमन योजना के टेंडर में केवल दो बोलीदाताओं की भागीदारी रही और सेवा की लागत ₹2.00 लाख प्रति यूनिट जो पिछले 5 सालों से सफल चलायी जा रही थी, से सीधे ₹3.10 लाख प्रति यूनिट प्रति माह कर दी गई – वह भी एक ऐसी संस्था (Dhanush healthcare) को, जिसे पहले से ही लाभ पहुँचाने की तैयारी की जा रही थी। इस टेंडर में ऐसी तकनीकी सरते डाली गयी थीं जिससे कि इसी संस्था को तकनीकी अधिक अंक प्राप्त हो सकें और उसके परिणाम स्वरूप इसी संस्था को कार्य सौंप दिया गया।

सूत्रों के अनुसार, इसी रणनीति को अब 108 संजीवनी एक्सप्रेस योजना में दोहराया गया है। CAMP संस्था को 90 से अधिक अंक प्रदान किए गए हैं, जबकि अन्य दो पात्र और अनुभवी संस्थाओं को जानबूझकर कम अंक दिया गया है। जिससे कि CAMP को टेक्निकल में ज्यादा अंक दे कर पिछली बार कि तरह ही इस बार मनचाही संस्था को कार्य सौंपा जा सके। बताया जा रहा है कि मूल्यांकन समिति के सदस्यों ने अन्य संस्थाओं के प्रेजेंटेशन में कोई रुचि नहीं दिखाई और यह आभास हुआ कि मार्किंग पूर्व से निर्धारित थी।

अभी तक का सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि CAMP संस्था पूर्व में मुक्तांजली योजना के अंतर्गत फर्जी बिलिंग, बिना कार्य के भुगतान, और सेवा में व्यापक भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मामलों में संलिप्त रही है, जिसमें कमलेश जैन की संलिप्तता स्पष्ट रूप से सामने आई थी। मीडिया रिपोर्ट्स और समाचार पत्रों ने इस मामले को कई बार उजागर किया है। इसके बावजूद, इसी व्यक्ति को इस बार भी निर्णायक भूमिका में शामिल किया गया है – जिससे यह साबित होता है कि नियामक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है।

QCBS (Quality-cum-Cost Based Selection) प्रणाली का उद्देश्य पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ श्रेष्ठ सेवा प्रदाता का चयन करना होता है। परंतु, छत्तीसगढ़ में इस प्रणाली का उपयोग एक हथियार के रूप में किया जा रहा है – जिससे एक विशेष संस्था को ऊँची दरों पर सेवा का ठेका दिया जा सके। ऐसा उदाहरण सामने आया है जहाँ केवल 1–10 गाड़ियों के 10 कार्यों का सीमित अनुभव रखने वाली संस्था को 10 में से पूर्ण अंक दे दिए गए, जबकि देश भर में 3000–4000 एंबुलेंस के कुशल 10 से अधिक राज्यों का सफल संचालन करने वाली अनुभवी संस्था को केवल 5 अंक ही प्रदान किए गए। चौंकाने वाली बात तो ये है कि वर्तमान में जो संस्था इस परियोजना का संचालन कर रही है वो भी इस प्रक्रिया में अच्छे अंक हासिल करने में असफल रही है।

इस प्रक्रिया में यह भी देखा गया कि कई संस्थाओं ने जानबूझकर बोली लगाने से परहेज़ किया क्योंकि निविदा दस्तावेज की शर्तें और मूल्यांकन मानदंड इतने भ्रामक और असामान्य थे कि उनके माध्यम से निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा संभव ही नहीं थी। यह स्पष्ट संकेत है कि पूरी प्रक्रिया को पूर्व से ही एक विशेष संस्था के पक्ष में डिजाइन किया गया था।
यदि इसी प्रकार की कार्यप्रणाली को अपनाया गया और निष्पक्षता एवं पारदर्शिता की अनदेखी की गई, तो यह ना केवल राज्य और केंद्र सरकार के बजट का दुरुपयोग होगा, बल्कि यह जनता के हितों, सरकारी नीतियों और प्रशासनिक जवाबदेही की भी सीधी अवहेलना होगी। इससे शासन और जनता के बीच विश्वास का संकट उत्पन्न होगा।
इससे स्पष्ट है कि न तो सेवा की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है, न ही सरकारी धन की बचत। सरकार की पूरी मंशा एक मनचाही संस्था को लाभ पहुँचाने की प्रतीत होती है। यदि यह प्रक्रिया इसी प्रकार चलती रही, तो यह न केवल राज्य और केंद्र सरकार के बजट का दुरुपयोग होगा, बल्कि इससे शासन की पारदर्शिता, जनहित और जवाबदेही पर भी गहरा आघात पहुँचेगा।

अतः यह आवश्यक है कि इस पूरे मूल्यांकन प्रक्रिया की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए, QCBS प्रणाली का दुरुपयोग रोका जाए, मूल्यांकन समिति के कार्यों की पारदर्शी ऑडिट करवाई जाए और निविदा प्रक्रिया को सभी प्रतिभागियों के लिए समान और न्यायसंगत बनाया जाए। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, तब तक यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की निविदा प्रणाली वास्तव में जनहित में कार्य कर रही है।

जनता, मीडिया और सभी हितधारकों से अनुरोध है कि वे इस विषय को गंभीरता से लें, ताकि छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनी रहे, और कोई भी संस्था जनहित के नाम पर अनैतिक लाभ प्राप्त न कर सके।

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